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ग़ज़ल
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
जो हुई सो हुई जाने दो मिलो बिस्मिल्लाह
जाम-ए-मय हाथ से लो मेरे पियो बिस्मिल्लाह
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
वाँ नक़ाब उट्ठी कि सुब्ह-ए-हश्र का मंज़र खुला
या किसी के हुस्न-ए-आलम-ताब का दफ़्तर खुला
यगाना चंगेज़ी
ग़ज़ल
किसी से कोई शिकवा है न दिल में कोई नफ़रत है
मिले हो तुम मुझे जब से ये दुनिया ख़ूबसूरत है
प्रोफ़ेसर महमूद आलम
ग़ज़ल
वफ़ा-शिआ'र को तू ने ज़लील-ओ-ख़्वार किया
जफ़ा-परस्त ये क्या शेवा इख़्तियार किया